इलाहाबाद हाईकोर्ट ग्रुप डी की परीक्षा में रविवार को दो सॉल्वर पकड़े गए। मथुरा निवासी गिरधर और ताजगंज निवासी हेमंत यादव अपने दोस्तों के स्थान पर परीक्षा देने आए थे। इस घटना ने पुलिस और परीक्षा अधिकारियों को चौंका दिया। गिरधर पहले ही सिपाही भर्ती परीक्षा पास कर चुका था और सोमवार को दस्तावेज व शारीरिक माप के लिए मथुरा पुलिस लाइन जाना था। लेकिन इससे पहले ही वह इस मामले में पकड़ा गया।
कैसे पकड़े गए आरोपी?
जॉन मिल्टन पब्लिक स्कूल, शमसाबाद मार्ग, आगरा में गिरधर परीक्षा देने पहुंचा। बायोमेट्रिक सत्यापन के दौरान उसका विवरण मेल नहीं खाया। जब उससे पूछताछ की गई, तो वह शिक्षकों को सही जवाब नहीं दे सका। शक बढ़ने पर पुलिस को बुलाया गया। पुलिस पूछताछ में गिरधर ने स्वीकार किया कि वह मथुरा निवासी हजरत के स्थान पर परीक्षा देने आया था। हालांकि, पुलिस को उसकी कहानी पर संदेह है और यह जांच कर रही है कि कहीं वह किसी सॉल्वर गैंग का हिस्सा तो नहीं।
दूसरा आरोपी हेमंत यादव सेंट एंड्रूज स्कूल, ताजगंज में पकड़ा गया। वह शिकोहाबाद निवासी आदेश कुमार के स्थान पर परीक्षा देने आया था। हेमंत स्नातक पास है और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था। पूछताछ में उसने दावा किया कि आदेश उसका दोस्त है और उसे पास कराने के लिए परीक्षा देने आया था। लेकिन पुलिस को इस पर पूरा भरोसा नहीं है।
क्या सॉल्वर गैंग से जुड़े हैं दोनों?
ताजगंज थाना प्रभारी निरीक्षक ने बताया कि गिरधर और हेमंत के खिलाफ परीक्षा अधिनियम के तहत केस दर्ज किया जाएगा। पुलिस जांच कर रही है कि दोनों किसी सॉल्वर गैंग से जुड़े हैं या नहीं। गिरधर की चालाकी और हेमंत की संदेहास्पद हरकतों ने मामले को और गंभीर बना दिया है।
गिरधर की मिन्नतें और पछतावा
गिरधर, जो सिपाही भर्ती परीक्षा पास कर चुका है, ने थाने में पुलिस से कई बार माफी मांगी। उसने कहा कि यह उसकी पहली गलती थी और उसने दोस्ती में फंसकर यह कदम उठाया। गिरधर ने बार-बार पुलिस से विनती की कि उसे छोड़ दिया जाए क्योंकि जेल जाने से उसका भविष्य खराब हो जाएगा। वह यह भी कह रहा था कि मुकदमे की वजह से वह सरकारी नौकरी नहीं पा सकेगा।
पुलिस की कार्रवाई जारी
पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है और मामले की गहराई से जांच की जा रही है। यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि वे किसी संगठित सॉल्वर गैंग का हिस्सा तो नहीं हैं। पुलिस का कहना है कि इस तरह की घटनाएं परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करती हैं।
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